आज मोरारजी देसाई का जन्म-दिवस है। उन्हें 99 साल की उम्र मिली। यदि आज वे जीवित होते तो वे सवा सौ साल की दहलीज पर खड़े होते। गांधीजी और मोरारजी सवा सौ साल तक जीना चाहते थे। मोरारजी भाई से मेरा घनिष्ट संबंध रहा। वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, भारत के वित्तमंत्री, गृहमंत्री, उप-प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री भी रहे। आज उन्हें देश में शायद ही कोई याद करता है। उनके नाम पर दिल्ली में कोई बड़ा स्मारक भी नहीं है। वे भारत के चौथे प्रधानमंत्री थे और पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। उन्हें पाकिस्तान की सरकार ने उनका सर्वोच्च सम्मान 'निशान-ए-पाकिस्तान' और भारत सरकार ने 'भारत रत्न' सम्मान भी दिया। वे अत्यंत स्पष्टवक्ता, सदाचारी और सादगीपसंद थे। प्रधानमंत्री तो कई हो चुके हैं और कई होते रहेंगे लेकिन कोई नेता मोरारजी भाई जैसा हो, यह आसान नहीं है। इसीलिए मैंने उन्हें याद करना ठीक समझा। भाईजी से मेरा परिचय 1964 में इंदौर में हुआ। उन्हें, कृष्णमेनन, केशवदेव मालवीय और कश्मीर के सांसद अब्दुल गनी गोनी को मैंने इंदौर क्रिश्चियन काॅलेज के वार्षिकोत्व में बुलाया था। 1965 में छात्र-आंदोलन में जेल काटकर मैं जब दिल्ली आया तो मोरारजी भाई से अक्सर भेंट होने लगी। उन्हीं दिनों अपने वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मेरा परिचय हुआ। वे उन दिनों भाईजी के युवा सहयोगी की तरह काम करते थे। जनवरी 1966 में शास्त्रीजी के निधन के बाद मोरारजी ने प्रधानमंत्री के लिए अपना दावा बोल दिया। तारकेश्वरी सिन्हा और मैंने कांग्रेसी सांसदों के घर-घर जाकर भाईजी के लिए अपील की लेकिन इंदिराजी ने उनको हरा दिया। उन दिनों स्रपू हाउस स्थित इंडियन स्कूल आॅफ इंटरनेशनल स्टडीज में अंतरराष्ट्रीय राजनीति में मैं पीएच.डी. कर रहा था। मुझे छात्रावास का पहला अध्यक्ष चुना गया। मैं उसके उदघाटन के लिए मोरारजी को बुला लाया। मेरे कहने पर मोरारजी ने अपना भाषण हिंदी में दिया। इस पर स्कूल के डायरेक्टर डाॅ. एम.एस. राजन ने पहले मेरी छात्रवृत्ति रोकी और फिर मुझे स्कूल से ही निकाल दिया। मामले ने इतना तूल पकड़ा कि कई बार संसद बंद हुई और शिक्षा मंत्री छागला साहब का इस्तीफा भी हुआ। इंदिराजी, कृपलानीजी, लोहियाजी और अटलजी समेत सभी बड़े नेताओं ने मेरा समर्थन किया लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ कि मोरारजी भाई एक शब्द भी नहीं बोले। लेकिन 1970 में मेरे विवाह के अवसर पर भाईजी ने मुंबई से एक लंबी चिट्ठी भेजकर मुझे शुभकामनाएं दीं। एक बार सोनीपत में हम दोनों का भाषण साथ-साथ हुआ। उसमें इतनी बदमजगी हो गई कि मैंने उनकी कार में बैठकर दिल्ली आने से मना कर दिया लेकिन बाद में जब भी हमारी भेंट होती, वे बड़े सम्मान और स्नेह से मिलते। वे पक्के गांधीवादी थे। एक दिन प्रसिद्ध फिल्म तारिका नर्गिसजी मेरे घर भोजन करने आईं। उन्हें प्रधानमंत्री देसाई का फोन आया। वे गईं। लौटकर उन्होंने हंस-हसंकर बताया कि मोरारजी भाई ने उन्हें राज्यसभा में नामजद करने से इसलिए मना कर दिया कि उनकी साड़ी तो खादी की थी लेकिन ब्लाउज मिल के कपड़े का था। मोरारजी भाई के अन्य कई व्यक्तिगत संस्मरण मेरे पास हैं लेकिन उन्हें फिर कभी लिखूंगा। आज तो उनको मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !