शास्त्रार्थ परम्परा भारतीय संस्कृति का विलक्षण तत्व : राज्यपाल श्री टंडन

राज्यपाल श्री लालजी टंडन ने राजभवन में आयोजित अखिल भारतीय शास्त्रार्थ सभा में कहा कि शास्त्रार्थ की परपंरा भारतीय संस्कृति का विलक्षण तत्व ह...

राज्यपाल श्री लालजी टंडन ने राजभवन में आयोजित अखिल भारतीय शास्त्रार्थ सभा में कहा कि शास्त्रार्थ की परपंरा भारतीय संस्कृति का विलक्षण तत्व है। सनातन काल से संस्कृति की निरंतरता का यही आधार है। उन्होंने कहा कि इसी कारण भारत में बड़े से बड़े सामाजिक और वैचारिक बदलाव बिना रक्तपात के हो गए, जबकि समकालीन संस्कृतियों में रक्तपात से बदलाव होने के कारण आज उनका नामो-निशान नहीं बचा है। श्री टंडन ने शास्त्रार्थ सभा में विद्वानों को 'शास्त्र कला निधि' से सम्मानित किया और उन्हें अंग वस्त्र, श्रीफल एवं स्मृति-चिन्ह भेंट किये।


राज्यपाल श्री टंडन ने कहा कि भारतीय संस्कृति में अनेक संस्कृतियाँ समाहित हुई हैं। सभी के अपने-अपने दर्शन भी हैं। ये सारी परपंराएँ आज भी जीवित हैं, क्योंकि शास्त्रार्थ के द्वारा इनमें समय-समय पर तर्क की कसौटी पर सामाजिक और धार्मिक परिवर्तन होते रहे। शास्त्रार्थ हमारी संस्कृति की अद्भुत धरोहर है। इसे पुनर्जीवित करने की जरूरत है। राज्यपाल ने कहा कि भारतीय संस्कृति में ब्रम्हांड में शांति और ज्ञान की प्रार्थना की जाती है। यह पूर्णत: तार्किक आधार पर है। ज्ञान होगा, तभी शांति होगी। यह तभी होगा जब सम्पूर्ण ब्रम्हांड में ज्ञान और शांति हो।


राज्यपाल ने कार्यक्रम की सूचना पर स्व-प्रेरणा से उपस्थित दर्शकों की बड़ी संख्या को शुभ-संकेत बताया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ें हमारे अंदर रची-बसी हैं। उज्जैन स्थित महर्षि सांदीपनि का गुरूकुल भारतीय शिक्षा प्रणाली के विशिष्ट गुणों का स्मरण कराता है। अनेक विद्याओं और कलाओं के विशेषज्ञ कृष्ण ने यहीं शिक्षा प्राप्त की थी, जो बताता है कि प्राचीन शिक्षा प्रणाली में समग्र शिक्षा की व्यवस्था थी। समान रूप से राजपरिवार और सामान्य निर्धन परिवार के विद्यार्थी एक-साथ एक समान शिक्षा ग्रहण करते थे।


शास्त्रार्थ सभा में न्याय, ज्योतिष, साहित्य और व्याकरण विषय के अंतर्गत नित्य और अनित्य के स्वरूप पर चिंतन किया गया। व्याकरण विषय के शास्त्रार्थ में शब्द की नित्य और अनित्य पर पूर्व और उत्तर पक्ष द्वारा तर्कसम्मत विचार प्रस्तुत किये गए। ध्वनि को अनित्य और शब्द को नित्य का भेद शास्त्रार्थ में प्रतिपादित किया गया। शास्त्रार्थ सभा में न्याय, ज्योतिष, साहित्य और व्याकरण के अंतर्गत नित्य और अनित्य के स्वरूप पर चिंतन किया गया। साहित्य विषय के शास्त्रार्थ में काव्य लक्षणा पर पूर्व पक्ष और उत्तर पक्ष द्वारा तर्क-सम्मत विचार प्रस्तुत किये गये। विमर्श में, शब्द काव्य है अथवा  गुण काव्य है, इस पर विद्वानों द्वारा कारण सहित विचार प्रस्तुत किये गये। ज्योतिष शास्त्रार्थ में काल तत्व पर विचार किया गया। काल के स्वरूप की व्याख्या पर विद्वतजन ने विमर्श किया। न्याय विषय के शास्त्रार्थ में परमाणुवाद पर विमर्श किया गया। तर्क के आधार पर पूर्व पक्ष द्वारा बताया गया कि परमाणु के बाद विभाजन नहीं हो सकता इसलिए वह नित्य है। उत्तर पक्ष द्वारा कहा गया कि जो अदृश्य और अविभाज्य है, वह अणु नहीं हो सकता।


कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन महर्षि पाणिनि संस्कृत वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. पंकज जानी ने दिया। उन्होंने कार्यक्रम और शास्त्रार्थ की रूपरेखा पर प्रकाश डाला। विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री एल.एस. सोलंकी ने विद्वतजनों का आभार माना।


 


 

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शास्त्रार्थ परम्परा भारतीय संस्कृति का विलक्षण तत्व : राज्यपाल श्री टंडन
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